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विधवा पुनर्विवाह कानून - Widow remarriage law

विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 में ब्रिटिश भारत में ब्राह्मण, राजपूतों, बनिया और कायस्थ जैसे कुछ अन्य जातियों के बीच मुख्य रूप से विधवापन अभ्यास पर रोक लगाने हेतु पारित किया गया था| यह कानून बच्चे और विधवाओं के लिए एक राहत के रूप में तैयार किया गया था जिसके पति की समय से पहले मृत्यु हो गई हो|
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 हिंदू जाति में जो पूर्व की विवाह परंपरा थी उसमें विवाह अधिनियम 1856 के अधिनियम के द्वारा सभी अड़चने द्वेष आदि को इस अधिनियम के तहत समाप्त कर दिया गया और इसमें नवीन पद्धतियों को जन्म दिया गया उस समय भारत ब्रिटिश अधीन था इसलिए भारत को ब्रिटिश भारत कहा जाता था यह सुधार हिंदू विवाह के विधवाओं के लिए सबसे बड़ा सुधार है.

विधवा पुनर्विवाह एक पुण्य कार्य

विधवा विवाह के सम्बन्ध में मध्यकाल में ज्योतिष्वेदो ने मिथ्या मान्यता के महत्व को प्रतिवादित कर दिया की लड़की पर दूसरी बार तेल नहीं चढ़ता है अर्थात विधवा की दूसरी शादी नहीं की जा सकती है जोकि स्वाभिक न्याय के विपरीत है. जब पुरुष कई – कई विवाह कर सकता है तो महिला क्यों नहीं विवाह कर सकती.

बाल विधवाओ और उन विधवाओ को जो विवाह करने की इच्छुक है उन्हें विवाह करने की स्वीकृति मिलनी चहिये , यह स्वाभाविक न्याय है. इस स्वाभाविक न्याय को शास्त्रों और ऋषियो ने भी मान्यता दी है. 


विधवा विवाह उपहार योजना

बजट घोषणा वर्ष 2007-08 की अनुपालना में विधवा महिलाओं की वैधव्य अवस्था को समाप्त करने की दृष्टि से इस योजना को प्रारम्भ किया गया है। योजनान्तर्गत, वर्तमान पेन्शन नियमों में हकदार विधवा महिला यदि शादी करती है तो उसे शादी के मौके पर राज्य सरकार की ओर से उपहार स्वरूप 15,000 रुपये की राशि प्रदान की जाती है। 

इस हेतु आवेदिका को निर्धारित प्रार्थना पत्र भरकर विवाह के एक माह बाद तक सम्बन्धित ज़िले के ज़िला अधिकारी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को प्रस्तुत करना होगा।

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