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जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड- Jallianwala Bagh massacre

1919 बैसाखी के दिन हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 1 अप्रैल ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे,और २००० से अधिक घायल हुए।अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। 


ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।


यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी.


 यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था, तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। इसी घटना की याद में यहां पर स्मारक बना हुआ है।गोलीबारी में हुए मृत लोगों की संख्या को लेकर विवाद है।


 नरसंहार की ब्रिटिश जांच के बाद जो आंकड़े जारी हुए, उसके अनुसार मृतकों की संख्या 379 है जबकि जांच की पद्धति को लेकर काफी आलोचना हुई थी। अधिकारियों को इस बात की जांच का भार दिया गया था, कि नरसंहार के तीन माह बाद जुलाई, 1919 में कौन-कौन मारे गए।
13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में उधम सिंह ने हत्याकांड के समय पंजाब प्रांत के गर्वनर जनरल डायर को गोली मार दी थी। जनरल डायर ने कर्नल डायर को फायरिंग के आदेश दिए थे। कर्नल डायर की मौत 1927 में हो गई थी।

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